दोस्तों आज हम आपके साथ एक ऐसी स्टोरी शेयर करेंगे जिसे पढ़ने के बाद आपके होश उड़ जाएंगे और काफी सारी गलतफहमियां भी आपकी दूर हो जाएंगी।
यह कहानी है आसाम के एक स्पिन गेंदबाज जिन्होंने नेट में एक बार सौरव गांगुली को भी गेंदबाजी की थी और सिर्फ दादा को ही नहीं बल्कि सारी इंडियन टीम को भी गेंदबाजी की थी। यह कोई मामूली खिलाडी नहीं बल्कि रणजी ट्रॉफी में असम के लिए कप्तानी भी कर चुके hain.
Ranji trophy selection
यूं तो आप सब भी रणजी ट्रॉफी, दिलीप ट्रॉफी विजय हजारे ट्रॉफी या कोई भी डोमेस्टिक मैच खेलने का सपना देखते होंगे और उसमें सिलेक्शन का भरपूर प्रयास करते हैं और सोचते होंगे की एक बार रणजी में सिलेक्शन हो जाने के बाद तो ज़िन्दगी सेट है तो आँखें खोलने का वक्त आ चुका है।
Ranji trophy captain Prakash Bhagat sells tea for survival
यह कहानी है असम के स्पिनर प्रकाश भगत की जिन्होंने आप लोगों की तरह ही रणजी ट्रॉफी, विजय हज़ारे ट्रॉफी और अन्य घरेलू टॉफीस खेलने का ना सिर्फ सपना देखा था बल्कि कई घरेलु मैच खेल भी चुके हैं। प्रकाश भगत रणजी ट्रॉफी में कप्तान भी रहे और काफी समय तक कई डोमेस्टिक मैच खेलते रहे।
लेकिन अब इनके हालात ऐसे हैं कि वे चाय बेचकर गुजारा करते हैं इनकी एक फास्ट फूड की दुकान थी वह भी बंद पड़ चुकी है भगत के अनुसार इनका दो वक्त का खाने का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता है अब सोचिए जो शख्स रणजी ट्रॉफी खेल चुका हो कप्तानी भी कर चुका हो NCA के लिए बेंगलुरु में गेंदबाजी के लिए बुलाया गया हो इंडियन टीम को गेंदबाजी भी कर चुका हो उस व्यक्ति के इतने बुरे हाल हैं तो ऐसे में एक सवाल ज़रूर उठता है की “क्या रणजी ट्रॉफी खेलने से वक्त नहीं बदलता”?
Prakash bhagat cricket story
चलिए कहानी की शुरुआत शुरू से करते हैं। दरअसल यह कहानी उस दौर की है जब भारत और न्यूजीलैंड का मैच होने वाला था सन 2003 में सौरव गांगुली अपनी टीम के साथ न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच की तैयारी में लगे हुए थे उन दिनों न्यूज़ीलैंड स्पिनर डेनियल विटोरी का खौफ फैला हुआ था डेनियल वाकई में ज़बरदस्त फॉर्म में थे इसलिए सौरव गांगुली चाहते थे कि डेनियल विटोरी की गेंदबाज़ी के खिलाफ भारतीय टीम को अच्छी प्रैक्टिस मिले।
इसलिए दादा ने NCA (National Cricket Academy से दरखास्त की कि ऐसे गेंदबाज का बंदोबस्त किया जाए जो विटोरी की तरह गेंदबाजी कर सके। यहाँ एक बात आप जान लें की जब भी इंडियन टीम या कोई भी नेशनल टीम प्रैक्टिस करती है तो वह अक्सर कुछ गेंदबाज डोमेस्टिक टीम में से चुनते हैं जो बल्लेबाज़ों को नेट पर अच्छा अभ्यास करा सके। इसी सिलसिले में असम स्पिन गेंदबाज़ भगत को 2003 में NCA के द्वारा फोन किया गया और उन्हें तुरंत बेंगलुरु के स्टेडियम में पहुंचने को कहा जहां वह सौरव गांगुली और उनके लड़कों को गेंदबाजी करके डेनियल विटोरी की स्पिन बोलिंग खेलने की प्रैक्टिस करा सके।
जब बल्लेबाज़ी छोड़ दादा ने भगत को दिए बॉलिंग टिप्स
भगत के अनुसार वह सौरव गांगुली को गेंदबाजी करने का अनुभव कभी भूल नहीं पाएंगे भगत आगे बताते हैं कि उन्हें सौरव गांगुली की तरफ से काफी टिप्स भी मिले सौरव गांगुली स्वीप शॉट का लगातार अच्छा प्रयास कर रहे थे, उनकी गेंदबाजी पर अच्छा खेल रहे थे और उन्होंने भगत से अपने कुछ निजी अनुभव और टिप्स शेयर किए।
प्रकाश भगत ने रणजी ट्रॉफी के 2 सीजन खेले हैं 2009-10 और 2010-11 में खेले हालांकि उन्हें सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में नहीं चुना गया पर उसके बावजूद भी उन्होंने तकरीबन सभी ऐज ग्रुप टूर्नामेंट्स में असम का प्रतिनिधित्व किया।
आज प्रकाश भगत 34 साल के हो चुके हैं और यह बात तब की है जब वह अंडर-17 विजय मर्चेंट ट्रॉफी में खेल रहे थे उस दौरान ही NCA के द्वारा भगत को कॉल गया और उन्हें गेंदबाजी के लिए बुलाया गया उस समय प्रकाश भगत असम के लिए खेल रहे थे वह बिहार के खिलाफ खेल रहे थे और उन्होंने हैट्रिक समेत 7 विकेट लिए थे जिसने एनसीए का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें चुना गया टीम इंडिया और सौरव गांगुली को नेट्स में बॉलिंग कराने के लिए।
भगत चाय बेचने पर मजबूर
सन 2011 में भगत के पिता जी नहीं रहे और उन पर फैमिली की सारी रेस्पॉन्सिविटी आ गई भगत ने भी अपने बड़े भाई को ज्वाइन किया उनके बड़े भाई चाय की शॉप चलाते हैं सिलचर में जो कि आजकल काफी बुरी स्थिति में है क्योंकि महामारी के कारण उनकी चाय की बिक्री ज्यादा नहीं है बर्गर फास्ट फूड की दुकान जो छोटी सी थी वह पहले ही बंद हो चुकी है।
भगत के अनुसार उनकी हालात इतने ज्यादा गंभीर हैं कि वह दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाते हैं कई बार उन्हें भूखे पेट भी सोना पड़ जाता है और यह वाकई में काफी दयनीय हालात है।
भगत कहते हैं कि उनके टीममेट जिनके साथ कभी उन्होंने ड्रेसिंग रूम शेयर किया था वह सब के सब गवर्मेंट जॉब लग चुके हैं और अच्छी तरह से सेटल हो चुके हैं पर वे खुद अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं और उन्हें काफी ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है जिंदगी को जीने के लिए
तो दोस्तों यह एक सच्ची कहानी है जो आपको क्रिकेट के अंदर का रहस्य भी बताती है कि महज एक या दो सीज़न रणजी ट्रॉफी या कोई और ट्रॉफी खेलने से ही आप सेटल नहीं हो जाते हैं।
निरंतर संघर्ष और सेविंग है ज़रूरी
दोस्तों बुरा वक्त किसी का भी आ सकता है इसलिए आपको निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ेगा आप देख सकते हैं कि प्रकाश भगत एक समय असम के कप्तान थे और उन्होंने हर एक ऐज कैटेगरी में काफी सारे घरेलू टूर्नामेंट खेले और उन्होंने कप्तानी भी की है, वे रणजी के तो 2 सीजन खेल चुके हैं और उसके बावजूद भी आज 34 साल की उम्र में पहुंचने पर वह सेटल नहीं हो पाए हैं और चाय की दुकान चलाकर अपना जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं।
इसलिए जरूरी है कि वक्त की नजाकत को समझें और जब भी आप डोमेस्टिक टीम में सेलेक्ट होते हैं तो अपनी सेविंग भी शुरू कर दें क्योंकि वक्त एक ऐसी चीज है जिसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि कब कोई राजा रंक बन जाए और कब रंक राजा बन जाए। हकीकत में यह ऐसी कहावत है जो कई बार सच भी हो जाती है ।
यदि ध्यान से देखा जाए तो असल में एक झटके में कोई राजा रंक नहीं बनता और ना ही कोई रंक राजा बन सकता है। दरअसल यह खेल सिर्फ मेहनत कर पैसे कमाने का नहीं बल्कि उसे बचा कर थोड़ा थोड़ा फ्यूचर के लिए निवेश करने का भी है।
आपकी मेहनत या यूँ कहें सही दिशा में की गई निरंतर स्मार्ट मेहनत आपको राजा बना सकती है पर साथ ही आपकी लापरवाही और सेविंग ना करने की आदत तथा सही जगह इन्वेस्ट ना करने की गलत आदत आपको राजा से रंक भी बना सकती है।