नेशनल स्पोर्ट्स डे कंट्री बोट रेस साई 29 अगस्त को नेशनल स्पोर्ट्स डे आने वाला है और इस मौके के अवसर पर स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, साईं ने कंट्री बोट रेस कराने का एक अनोखा प्रयास किया है।
नेशनल स्पोर्ट्स डे हर वर्ष 29 अगस्त को हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।
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स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया
स्पोर्ट दिवस के मौके पर स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस अलापूजहा पब्लिक के लिए एक अनोखा कंपटीशन लेकर आए हैं और उस कंपटीशन का नाम है “कंट्री बोट रेस”। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साईं) ने कहा कि इस प्रतियोगिता का उद्देश्य वाटर स्पोर्ट्स को लोकल कम्युनिटी के बीच जागरूक करना है और इस खेल का ट्रेडीशन के प्रति पैशन अपने आप में काफी अधिक है उस पैशन को बढ़ावा देना है। इसके अलावा इस प्रतियोगिता का एक और उद्देश्य रॉ टैलेंट को ढूंढना है।
नेशनल स्पोर्ट्स डे कंट्री बोट रेस साई
साईं ने प्रेस रिलीज में बताया की नेशनल बोट रेस में प्रतिभाग करने के लिए पूरे देश से कोई भी प्रतिभाग कर सकता है। यह प्रतियोगिता तीन कैटेगरी में होगी – सिंगल पैडल, डबल पैडल, तथा क्वाड्रपल पैडल यह, प्रतियोगिता पुन्नामाडा लेक में होगी। कंट्री बोट रेस इनामी राशि भी रखी गई है और पहले स्थान के लिए राशि किस प्रकार से है: सिंगल पैडल – ₹5000, डबल पैडल – ₹7000 तथा क्वाड्रपल पैडल – 10000 रुपे।
साईं के अनुसार 18 वर्ष से कम के असाधारण प्रतियोगिओं को खेलो इंडिया प्रोटोकॉल के तहत आगे की ओर मौका दिया जाएगा।
नेशनल स्पोर्ट्स डे क्यों मनाया जाता है
भारत में 29 अगस्त प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है और इसे अंग्रेजी में नेशनल स्पोर्ट्स डे कहते हैं। 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म हुआ था और मेजर ध्यानचंद को सम्मानित करने के लिए ही उनके जन्म दिवस के दिन पर नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद पद्मभूषण विजेता है। मेजर ध्यानचंद के खेल काल को हॉकी का स्वर्ण काल भी कहा जाता है, अपने खेर काल के दौरान मेजर ध्यानचंद ने भारत को कई बार गोल्ड मेडल दिलाए।

मेजर ध्यानचंद की हॉकी का जादू सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में गूंजता था। उनके हॉकी स्टिक से जुड़ा एक किस्सा पूरे विश्व में काफी लोकप्रिय है, शायद आपने सुना हो।
एक बार वर्ल्ड कप के दौरान जब मेजर ध्यानचंद खेल रहे थे तो उनके जबरदस्त स्किल्स के कारण हॉकी की गेंद उनकी हॉकी से अलग ही नहीं हो रही थी और वे अपोजिशन टीम के सभी खिलाड़ियों को चकमा देते हुए बड़ी आसानी से गोल दाग रहे थे। मेजर ध्यानचंद की कुशलता विरोधी खिलाड़ियों और उनकी टीम मैनेजमेंट से देखी नहीं गई तथा उन्होंने खेल बीच में ही रोककर मेजर ध्यानचंद पर यह आरोप लगाए कि उनकी हॉकी में चुंबक लगा है और उनकी हॉकी तुरंत परीक्षण के लिए जानी चाहिए तथा उन्हें कोई नई हॉकी दी जाए।
खेल के रेफरी भी दबाव में आए और उन्होंने मेजर ध्यानचंद की छड़ी बदली किंतु इस बार भी ऐसा ही हुआ और मेजर ध्यानचंद की हॉकी से गेंद दूर जाती नहीं दिखी जिसे देख विपक्षी खेमे ने फिर से सवाल उठाए की इस बार भी ध्यान चंद को चुंबकीय हॉकी दे दी गई है।
मेजर ध्यानचंद की हॉकी दोबारा बदली गई, हॉकी फिर से जरूर बदल गई लेकिन मेजर ध्यान चंद के कौशल को वे नासमझ कैसे बदल सकते थे। इस बार ना सिर्फ विपक्षी टीम को बल्कि पूरे विश्व को यह समझ में आ गया कि जादू या चुंबक मेजर ध्यानचंद की छड़ी में नहीं बल्कि उनके हाथों में है यह उनकी कला है जिसे बदला नहीं जा सकता! जिसे छीना नहीं जा सकता! और उस दिन के बाद से सारे विश्व ने मेजर ध्यानचंद का लोहा माना तथा उन्हें हॉकी का जादूगर मान लिया।