2023 चल रहा है और एक अजीब सी विडंबना युवा खिलाड़ियों के सामने है, हरिद्वार क्रिकेट एसोसिएशन के हिसाब से केवल वही खिलाड़ी डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट ट्रायल दे सकते हैं जो किसी क्लब में खेल रहे हैं ऐसे में उन खिलाड़ियों का क्या दोष जो किसी क्लब से नहीं खेल पा रहे हैं।
आज हम इसी सवाल पर चर्चा करेंगे और आप भी अपने महत्वपूर्ण सुझाव कमेंट बॉक्स में दें तथा इस पोस्ट को शेयर कर उन सभी युवाओं को सपोर्ट करें जो क्रिकेट में अपना करियर बनाना चाहते हैं किंतु क्रिकेट एकेडमी जॉइन करने में असमर्थ हैं।
उत्तराखंड क्रिकेट ट्रायल फेल सिलेक्शन नामुमकिन बिना अकैडमी
एक तो पहले ही उत्तराखंड को क्रिकेट की मान्यता काफी देर से मिली उसके बाद यहां के क्रिकेट एसोसिएशन की राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही। हम एक-एक कर उन बेतुके रूल्स एंड रेगुलेशंस को समझेंगे जो उत्तराखंड के युवा प्रतिभाओं को क्रिकेट में आने से रोक रही है, आप भी अपने सुझाव जरूर शेयर करें। सबसे पहले बात करते हैं इस अजीबोगरीब रूल की जिसके तहत किसी युवा को डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट ट्रायल देना है तो उसे किसी क्रिकेट क्लब में दाखिला लेना पढ़ेंगा।
हरिद्वार क्रिकेट एसोसिएशन पिछले 2 साल से लगातार इसी तरह से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट के ट्रायल करवा रहा है। अब देखना यह है कि बीसीसीआई को इस बात की जानकारी है या नहीं या फिर बीसीसीआई को किस तरह से जानकारी दी गई है की वह बीच में दखलअंदाजी करते नहीं दिख रहा। यह वाकई में उत्तराखंड की प्रतिभाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है बड़ी मुश्किल के बाद उत्तराखंड की क्रिकेट टीम बन पाई है।
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आप ही बताइए उत्तराखंड 2001 में एक अलग राज्य का दर्जा प्राप्त कर चुका था लेकिन 2018 में जाकर उत्तराखंड क्रिकेट टीम बन पाती है। इस देरी का नतीजा यह हुआ कि ऋषभ पंत जैसे खिलाड़ी को दिल्ली जाना पड़ा क्रिकेट में करियर बनाने के लिए पर सोचिए ऋषभ पंत दिल्ली जाना अफोर्ड कर पाए लेकिन बाकी प्रतिभाओं का क्या? यहां ऐसी भी प्रतिभाएं है जो दिल्ली नहीं जा पाए होंगे वे प्रतिभाएं वेस्ट हो चुकी।
देर से ही सही 18 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद उत्तराखंड में क्रिकेट टीम बननी शुरू हुई लेकिन अब एक नई समस्या सामने दिख रही है और कोई उस पर बात करता नहीं दिख रहा। समस्या यह है कि जो लोग क्रिकेट क्लब जॉइन नहीं कर सकते उन्हें हरिद्वार डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट ट्रायल में पार्टिसिपेट करने नहीं दिया जा रहा। इन प्रतिभाओं को सिर्फ एकेडमी नहीं ज्वाइन कर पाने पर क्रिकेट के ट्रायल से अलग कैसे किया जा सकता है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिनकी अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं होती वह बाकी कामों के साथ क्रिकेट एकेडमी ज्वाइन नहीं कर पाते हैं लेकिन उनमें प्रतिभा भरपूर होती है।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो जॉब कर रहे होते हैं और उनके पास एकेडमी ज्वाइन करने का समय नहीं होता है लेकिन वह भी प्रतिभा से भरपूर होते हैं। इन खिलाड़ियों को एक मौका तो मिलना ही चाहिए अपनी प्रतिभा साबित करने का आखिरकार भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्जा हासिल है। बीसीसीआई को इस विषय में दखलअंदाजी जरूर करनी चाहिए ताकि भारत को विश्व स्तर के खिलाड़ी बिना किसी पार्शियल्टी के मिल सके।
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अब बात करते हैं एक और अजीबोगरीब रूल की और वह भी हरिद्वार क्रिकेट एसोसिएशन में देखने को मिलता है। हरिद्वार क्रिकेट एसोसिएशन के हिसाब से जो लोग ओपन एज कैटेगरी में क्रिकेट ट्रायल देना चाहते हैं उनके पास 1 से 2 साल तक उत्तराखंड के ही बैंकअकाउंट में सैलरी आनी अनिवार्य है तभी वे उत्तराखंड क्रिकेट ट्रायल दे सकते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है उन लोगों का क्या जो लोग दिल्ली में जॉब करते थे और अब वापस उत्तराखंड आ चुके हैं तथा क्रिकेट में करियर बनाना चाहते हैं, उन लोगों का क्या दोष है जो किसान है या फिर छोटे व्यापारी हैं जिनके पास बैंक अकाउंट में रेगुलर पैसे नहीं आते हैं बल्कि उनका अधिकतम काम कैश पर आधारित होता है। हालांकि यहां छोटे दुकानदारों के लिए राहत है यदि दुकान उनके नाम पर है और दुकान का करंट अकाउंट है तो।
उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन को अपने बनाए गए रूल्स पर पुनर्विचार करना चाहिए और यदि यह रूल्स बीसीसीआई के द्वारा बनाए गए हैं तो उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन रूल्स को सही करने की मांग करें ना कि यह कहते हुए पल्ला झाड़े की रूल्स तो बीसीसीआई ने बनाए हैं।
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